Sunday, April 11, 2010

चचुआ

मैं रोजना की तरह शाम को दफ्तर में था। तभी हमारे मोबाइल फोन पर म्यूजिक बजने लगा। उठाकर देखा तो तो शहर से चचुआ का फोन था। चचुआ रिटायर्ड 'मास्साबÓ हैं। हैं तो बड़े भले आदमी लेकिन मीन-मेख खूब निकालते हैं। मसलन अगर आप उनसे कहो कि चचुआ ये आपकी पैंट शर्ट बहुत अच्छी सिली है। कहां से सिलवाई। फौरन जबाव देते हैं...क्या खाक अच्छी सिली है। देखो तो...ससुरे ने पैंट में सामने दो दो प्लेटें बना दी हैं। कतई लौंडा बना दिया है मुझे टेलर मास्टर ने। जब तक हम कुछ कहते कहते तब तक दो चार गाली दे मारी टेलर मास्टर को। बेचारा टेलर भी...। अच्छा...चचुआ तुनक मिजाज हैं इसलिए उनको मोहल्ले के लौंडे छेड़ते भी बहुत हैं। चचुआ जब कभी बालों में खिजाब लगा के निकलते हैं तो पूछो मत...कम बालों वाली मूछों पर धर धर ताव देते हैं...बालों में कंघी भी करते हैं...फिर इतना देख मोहल्ले के लौंडे कहीं रुकने वाले...कह ही देते चचुआ...मिथुन चक्रवर्ती लग रहे हो...और इतना कह कर लड़के भाग जाते...बस चचुआ को मिल गया मौका गरियाने का...ये...ये...रम गुलमवा का लौंडा...रुक...रुक और राम गुलाम के लड़के को दौड़ा लेते थे। तब मैं भी छोटा था...बदमाशी करने में पीछे कतई नहीं रहता था। चचुआ को भी छेड़ देता था लेकिन गुपचुप तरीकेसे। एक बार तो किसी की शादी में चचुआ की नाक में किसी ने जलेबी घुसेड़ दी। बस फिर क्या था छींकते छींकते चचुआ की हालत खराब...जब छींकने से फुरसत मिली तो लगे गरियाने...तेरी...। शादी में माहौल गरम हो गया। होना भी था...भई जिसकी नाक में जलेबी डालोगे तो वह भड़केगा ही...खैर...चचुआ की कहांनियां तो बहुत हैं। सुनाऊंगा तो पूरी किताब बन जाएगी। खैर, चचुआ का मैने फोन उठाया...दुआ सलाम हुई...फिर कहने लगे कि बेटा...अब मैं कब आऊं डॉक्टर को दिखाने...चार महीने बाद आने को कहा था...चार महीने होने को हैं...क्या टिकट करवा लूं। मैंने हां में जबाव दिया और फोन कट गया। कुछ देर तक मैं चुपचाप रहा फिर ऑफिस से बाहर निकल आया...सोचने लगा कि ये वहीं चचुआ हैं जो कभी बहुत तुनक मिजाज हुआ करते थे। बात बात पर गरियाते रहते थे। आज...बोलने में उनकी आवाज लडख़ड़ाती है। चलने के लिए किसी का सहारा लेना पड़ता है। बाल सफेद हैं लेकिन उनमे खिजाब नहीं है। बीमारी ने उनको तोड़कर रख दिया है। घर से बाहर निकलना भी अब उनकेलिए मुश्किल है...। आज उनको परेशान करने वाले मोहल्ले के लौंडे देश से लेकर विदेश में अच्छी अच्छी जगहों पर हैं। जिसको भी पता चलता है...वह चचुआ के इलाज के लिए हर संभव मदद करता है। करे भी क्यों न...चचुआ गरियाते थे...लेकिन प्यार भी करते थे...मैं भी उसी मदद करने वालों की कड़ी का एक हिस्सा बन उनका इलाज कराने का छोटा सा प्रयत्न करता हूं। उनका पीजीआई से इलाज चल रहा है। मेरे अच्छे डॉक्टर मित्र हैं जो चचुआ को अपना चचुआ समझ कर इलाज करते हैं।