Tuesday, April 21, 2015

...हां...हां...वो मैदान ही है...अमृत


अमृत...तुम पहाड़ से नीचे गए हो कभी। हां...शाब...गया है न। नीचे गया है। बागडोगरा जाता रहता है। शाब लोग मेम शाब लोग आता है न। उनको एयरपोर्ट लेने जाता है। कभी न्यूजलपाई गुड़ी भी हो आता है। हम्म्म्म्म...शादी मना लिया है क्या तुमने अमृत। हां हां शाब...एक बेटी है मेरा। इंटर क्लास में है शाब। मुझे देखकर लगता नहीं है न शाब कि मैं शादीशुदा है...इतना कहते हुए अमृत मुस्कराने लगा। और मैं उसकी टाटा सूमों गाड़ी में अगली सीट पर बैठे कर ऐसे ही बाते करते हुए टाइम पास करने लगा।
इस बातचीत को दो साल होने को हैं। मैं चंडीगढ़ से लखनऊ आ गया और अमृत अभी भी उन्हीं सिक्किम की पहाड़ी वादियों में लोगों को घुमाता फिराता है।
आज मेरा वीकली ऑफ था। सो शाम को फैमिली के साथ कहीं निकला था। रास्ते में अचानक एक कॉल आई। जब तक उठाता तब तक फोन कट गया। दोबारा फिर कॉल आई और उठाने पर एक अंजानी सी आवाज आई...हेलो...आशीष शाब बोल रहे हैं...जवाब हां में दिया तो उधर से फिर से आई आवाज ने मेरी आंखें नम कर दी। वो आवाज मेरे दिल में घर करती चली गई और मैं गाड़ी को किनारे लगाकर आंखे नम करता। ये अमृत था। अमृत क्षेत्री। सिक्किम से। आज अमृत की बेटी दीक्षा की शादी है।
अमृत से मेरा कोई पुराना संबंध नहीं है। दो साल से ही जानता हूं उसको। लेकिन यह जान पहचान एक घर के किसी सदस्य और बेहद करीबी सी है। मैं दो साल पहले सिक्किम टूर गया था तो मेरी गाड़ी का ड्राइवर अमृत ही था। करीब बारह दिनों के इस टूर में ऐसा कुछ हुआ कि अमृत और उसके परिवार से बहुत नजदीकियां हो गई। दरअसल हआ ये कि एक दिन हम लोगोें को कहीं जाना था और अमृत गाड़ी लेकर नहीं आया। अमृत के न आने का कारण जब पता चला तो मैं अपना प्रोग्राम पोस्टपोन करके उसके घर चला गया। उस दिन उसकी शुगर बहुत बढ़ बई थी। अमृत को कई सालों से डाइबिटीज थी। घर वालों के लाख कहने के बाद भी वह इलाज नहीं ले रहा था। इस बात को लेकर उसके घर वाले डरे रहते थे कि कहीं अमृत को कुछ हो गया तो उनकी पूरी दुनिया ही उजड़ जाएगी। पता नहीं अमृत को क्या लगा कि उसने मेरा कहा मान कर अपनी सारी जांचे करवाई। उसकी शुगर हायर लेवल तक बढ़ी थी। मैंने अपने एक डॉक्टर दोस्त से चंडीगढ़ पीजीआई में सारी रिपोर्ट मेल से भिजवा कर दिखलाई। मामला रिस्की हो चुका था। कई आर्गन पर असर पड़ना शुरू हो गया था। लेकिन उसको कुछ मेडिसिन दी गई। वो डॉक्टर की एडवाइस पर दवा लेता रहा है और मैं अपने टूर के आखिरी पांच दिनों तक रोजाना उसको देखने जाता था। एक अटूट सा रिश्ता हो गया था। नार्थ सिक्किम जिले के एक बियावान इलाके में उसका गांव था। जहां पर अमूमन छह महीने से ज्यादा दिनों तक बर्फ जमी रहती है। गर्मियों में वह सिक्किम शहर में आ जाता है। बाकी के दिनों में अपने बूढ़े मांप के साथ वापस गांव में चला जाता है। और वहीं से छोटा मोटा कारोबार कर लेता है गाड़ी चलाने का।
खैर, सिक्किम से मैं वापस आ गया चंडीगढ़। आने के बाद कई बार अमृत से बातचीत होती रही। इसी बीच मैंने नौकरी बदली और लखनऊ आ गया। लखनऊ आने के बाद मेरे बहुत से नंबर गुम हो गए और उसी में गुम हो गया अमृत का नंबर। कुछ दिनों तक उसका इधर उधर से नंबर तलाशा। लेकिन सफलता नहीं मिल सकी।
आज शाम को अचानक आए उसके फोन से ऐसा लगा कि शायद कोई अपना बरसों से बिछड़ा हुआ मिल गया हो। फोन पर उसकी आवाज से लग रहा था कि वो रो रहा है लेकिन आंसू बाहर नहीं गिर रहे होंगे। मेरी भी पलके गीली हो रही थी। कहने लगा कि शाब...आपका नंबर मैंने चंडीगढ़ वाले डॉक्टर शाब से लिया है। आप लखनऊ चले गए। बताया भी नहीं। नंबर भी नहीं दिया। शाब...हम ड्राइवर लोग...क्यों आप मेरा नंबर रखेगा...क्यों बताएगा शाब, हम लोगों को। हम लोग दस बारह दिन ही तो साथ रहा था। आप लोगों को ऐसा बहुत सा ड्राइवर मिलता होगा। लेकिन शाब...लेकिन शाब...इतना कहते हुए वो फफक पड़ा। कुछ सेंकेंड की चुप्पी के बाद बोला...शाब, आज मेरी गुड़िया की शादी है। आप आएगा नहीं। आपने ही तो कहा था कि...अमृत तुम जल्दी ठीक हो जाओ...और अपनी बेटी की शादी करो।  अब मैं ठीक हो गया हूं। आज हम लोग अपनी गुड़िया का शादी मना रहा है...पता है शाब...गुड़िया की शादी सेना में काम करने वाले से हो रहा है...इससे भी ज्यादा उसको यह बात बताने में गर्व महसूस हुआ कि...
शाब...हम लोग तो पहाड़ से नीचे कभी नहीं उतर पाया। लेकिन आपको मालूम हैं मेरी गुड़िया गोरखा रेजीमेंट में जलंधर जा रहा है। उसका पति वहींं पोस्वोट है। हंसते हुए उसने पूछा...शाब जी, वो पहाड़ तो नहीं है...इतना कहते हुए मैं भी हंस पड़ा...हां...हां...अमृत...वो मैदान ही है...