Saturday, May 22, 2010

मैं और मर्सिडीज एसयूवी की ड्राइविंग

बहुत ही अच्छा लगा जब मैं दुनिया की सबसे मंहगी एसयूवी में शुमार मर्सिडीज जीएल क्लास में चढ़ा। एक अजब की अनुभूति थी। क्योंकि यह एक तरह से फ्यूचर मशीन में बैठने जैसा था। हवाई जहाज में बैठने का अवसर खूब मिला लेकिन भारत में तकरीबन ढाई करोड़ रुपये में आने वाली मर्सिडीज जीएल क्लास में बैठना और उसे चलाना कुछ अलग ही था। छोटी छोटी ढेर सारी इतनी बटनें और तमाम तरह की स्क्रीन्स। समझ में ही नहीं आ रहा था कि हरी सिंह जी जो कि मुझको इस गाड़ी में सवारी का आनंद दिलानें के लिए बैठे थे कौन सी बटन दबाते ही कार के करतब दिखाने लगते थे। मैं करीब ४८ डिग्री की सीधी चढ़ाई वाली सड़क पर उस गाड़ी से चढऩे लगा तो अचानक हरी सिंह जी ने कार का ब्रेक छोड़ दिया। कहा देखो...कार फिर भी वापस पीछे नहीं आएगी। मैं हैरान था लेकिन ज्यादा नहीं क्योंकि कुछ दिन पहले मैंने मुंबई के अपने एक फिल्म अभिनेता दोस्त से इस सेगमेंट की किसी अन्य एसयूवी की यह खासियत सुनी थी कि इसमें पहाड़ पर चढऩे पर एक ऐसे मोड में गाड़ी डाल देते हैं जो बैक नहीं होती।
खैर...हरी सिंह ने सैर कराई। मुझसे भी ड्राइव करने को कहा...मै सेंट्रो चलाने वाला बंदा...मर्सिडीज...वह भी इतनी तकनीकियों से भरी पूरी ऊपर से इत्ती मंहगी...थोड़ा सा डर लग रहा था...लेकिन सिंह साहब नहीं माने...बोले...मिस्टर तिवाड़ी...प्लीज कम टू दि ड्राइविंग सीट...तभी पास में खड़े मर्सिडीज बेंज के जनरल मैनेजर (प्रोडक्ट मैनेजमेंट) मानस ने मेरा हाथ पकड़ा और ड्राइविंग सीट की ओर ले आए। अब गाड़ी की स्टेयरिंग हाथ में...और दिल में धक धक...खैर गाड़ी बढ़ी तो मुझे पता ही नहीं चला...कब ये रेंगने लगी। करीब पच्चीस से तीस सेकेंड के बाद यही कार मुझसे मानों उउऩे जैसी लगी हो। खाली मैदान में सवा सौ से ज्यादा की स्पीड...बहुत थी। वैसे मैं अपनी बीबी से चुराकर कभी कभार अपनी कार को सौ से ऊपर पहुंचा देता हूं लेकिन कहा न...सिर्फ कभी कभार....।
खैर...मर्सिडीज को हरी सिंह जी के सुपुर्द कर वापस ऑफिस की ओर निकल पड़ा...एक अलग अनुभव के साथ...। ठीक उसी वक्त मुझे वह दिन याद आ रहे थे जब मैं अपने बाबा के साथ बैलगाड़ी पर चढ़कर खेतों में जाया करता था...:)