Thursday, October 6, 2016

नीले आकाश, सुनहरे पहाड़ और सपनों सा हसीन...लद्दाख 
हाय...आइ एम अकबर...बेसिकली फ्रॉम लखनऊ...
अच्छा...अकबर दि ग्रेट फ्रॉम लखनऊ...गुड...आप तो मेरे साथ सफर करेंगे। तभी पीछे से आवाज आई...आशीष...अकबर साहब तो कल से पागल ही हुए जा रहे थे कि...मेरे लखनऊ से कौन आ रहा है... कई बार पूछा...एयरपोर्ट पर जब आप नहीं मिले तो सोचा बोर्डिंग में ही मिल लेंगे। लो जी मिल लो...इतना कहते हुए शमिता ने कहा...हॉय आई एम शमिता...शी इज पूर्णिमा एंड शी इज रजनी...और भ्मी बहुत सारे लोग हैं। जो सुबह पांच बजे की फ्लाईट से लेह पहुंच चुके हैं। अब हम सब कुछ दिन लेह में एक साथ गुजारेंगे। सुबह आठ बजकर पचास मिनट पर दिल्ली से उड़े थे। दस बज रहे थे तभी जहाज में अनाउंस हुआ कि लेह एयरपोर्ट पर सेना के जहाजों की उड़ान हो रही है। थोड़ा वक्त लगेगा।
बंजर से भूरे रंग के पहाड़ों की चोटियां। बादलों की ओट में कभी छुप रहीं थी तो कभी सामने आने लगी। तभी फिर अनाउंस हुआ कि अब हम कुछ मिनट में लेह एयरपोर्ट पर लैंड करेंगे। बाहर का तापमान 18 डिग्री सेल्सियस है। समुद्र तल से साढ़े ग्यारह हजार फीट की ऊंचाई पर होने की वजह से लेह में ऑक्सीजन की मात्रा कम है। इसलिए आप लोगों को सलाह दी जाती है कि अपने शरीर को यहां के वातावरण के अनुकूल करने लिए कम से कम 24 घंटे आराम करने दें। पानी और लिक्विड डाइड ज्यादा से ज्यादा लें। हैपपी स्टे इन लद्दाख...इतना सुनते सुनते जहाज लैंड कर चुका था।
यह मेरी लेह की दूसरी विजिट थी। पहली विजिट महज कुछ घंटों की ही थी। जब 2010 में लेह में हुए क्लाउड बर्स्ट के दौरान सीआईआई और सेना ने यहां के गांवों को बसाया था और दिखाने के लिए लाए थे। स्वेटर से लेकर जैकेट तक बाहर आ चुके थे हालांकि पहनने की जरूरत नहीं पड़ी। लेकिन जहाज के कैप्टन के इंस्ट्रक्शन जरूर कानों में सुनाई पड़ रहे थे...अधिक ऊंचाई के चलते सांस लेने में दिक्क्त हो सकती है। लोकल हॉस्पिटल से लेकर सेना के अस्पताल में तक में आप एडवाइस ले सकते हैं आदि आदि।
एयरपोर्ट के बाहर पहुंचते ही सामने दिखते बेइंतहां खूबसूरत शांति स्तूपा की चमक आपको एक अलग दुनिया का अहसास कराती है। सूरज की रोशनी से नहाए हुए भूरे और गोल्डेन कलर के पहाड़ और उनके पीछे एकदम नीले रंग का आसमान मानों लगता हो कोई कैनवास पर उकेरी गई तस्वीर बनी हो। लेह लद्दाख एक ऐसा इलाका है जहां हर वक्त यह महसूस कर सकते हैं कि नीले हो चले आकाश को आप कभी भी छू सकते हो।
नीले आकाश और सुनहरे पहाड़ों में खोया हुआ ही था कि...पीछे से आवाज आई...अबे आशीष...तू अभी भी वैसा है या कुछ बदल गया है...मैंने पीछे मुड़कर देखा तो शायदा जी अपने बैग खींचते हुए और मुझसे यह पूछते हुए आगे बढ़ी चली आ रहीं थी। मैंने भी मुस्कराते हुए उनका इस्तकबाल किया और कहा... कुछ दिन आप साथ रहेंगी...पता ही चल जाएगा बदला हूं या नहीं। शायदा जी को मैं पिछले करीब ग्यारह सालों से जानता हूं। चंडीगढ़ में मैंने उनके साथ काम किया। हालांकि लेह में उनसे मुलाकात तकरीबन छह साल बाद हुई। शायदा जी को सांस लेने में तकलीफ होने लगी थी। लेकिन कुछ समय में उनको राहत मिली लेकिन गेस्ट हाऊस पहुंंच कर।
करीब बीस मिनट की दूरी तय करने के बाद हम लोग एक खूबसूरत से एक घर नुमा गेस्ट हाऊस 'मांग्यूल' पहुंच चुके थे। चारों ओर खूबसूरत से पहाड़ों के बीच में बना यह बेइंतहा खूबसूरत गेस्ट हाऊस और उससे भी प्यारा उसका केयर टेकर। चंद मिनट में हम लोगों को अपने अपने कमरे दिखाकर दौड़कर चाय ले आया। उसने भी सलाह दी कि अब आप लोग सो लें तो ज्यादा बेहतर होगा। दोपहर के बारह बज रहे थे। जैसे ही लेटे चंद मिनट में नींद ने अपने आगोश में ले लिया। करीब तीन घंटे बाद राहुल की एक भारी भरकम आवाज आई...अरे उठना नहीं है क्या...खाना वाना भी तो खाना है। चल उठ जा...दादा राहुल दत्ता काेलकाता से हैं। दिल्ली गेस्ट हाऊस से लेकर लेह तक में मेरे रूम पार्टनर भी :) जैसे तैसे उठे तो शरीर एकदम सा हल्का। हालांकि सोते वक्त जरूर मुझे भी सांस लेने में कठिनाई हुई लेकिन धीरे धीरे सब नॉर्मल होने लगा।
रअब हम लाग मेन मार्केट निकल चुके थे। मिट्टी की सड़कें। मिट्टी की दीवारें। आप कितना भी साफ सुधरे बनकर निकलें हो एक बार तो आपके जूतों से लेकर कपड़ों तक में धूल भर ही जानी है। मुझे बताया गया कि यहां पर बारिश नहीं होती है। यही वजह है कि अभी भी बहुत से पुराने घरों में या यूं कह लें ज्यादातर घर मिट्टी के ही बने हैं। खैर...हम लोग एक रेस्ट्रांट पहुंचे। शायद वो लेह के अच्छे रेस्ट्रांट में रहा होगा। लेह में कोई भी नामी होटेल आैर कोई भी फेमस रेस्ट्रांट चेन नहीं है। करीब दो घंटे यहां बिताकर हम लोग फिर वापस अपने गेस्ट हाऊस को चल पड़े। क्योंकि शरीर को बेवजह थकाना नहीं था।
रात को जल्दी सोना भी था क्योंकि अगली सुबह लद्दाख के सबसे पुराने वंश द्रुपका लीनेज की हेमिस मॉनेस्ट्री भी जाना था। जो शहर से पचास किलोमीटर दूर और लेह शहर से ज्यादा ऊंचाई पर थी।
क्रमश...