Sunday, June 27, 2010

रात, अंधेरा, भूत और खौफ

एक हमारे साथी हैं। बहुत ही सज्जन हैंं। उनकी खास बात यह है कि वह अपनी एक सबसे बड़ी कमजोरी को सबके सामने मुस्कुराते हुए बता देते हैं। दरअसल वह रात को डरते बहुत हैं। डर की वजह भी बताते हैं। कहते हैं कि भाई साहब रात को भूत से डर लगता है। अकेले सो नहीं सकते।
इसी रविवार को मैं दफ्तर में लंच कर रहा था। तभी वह भी पहुंच गए। मैंनू पूंछा भई...क्या हाल है। कल रात को आप घर पर नहीं आए थे। तो उन्होंने बताया भाईसाहब मैं रात को अपने घर पर ही था। यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ, पूछा और कौन था...उन्होंने थोड़ा गर्व से कहा कि...कोई नहीं...भाई साहब मैं अकेला ही था...मेरे मुंह से अचानक निकला...अरे नहीं...फिर...सोए कब थे...। बस फिर क्या था...उन सज्जन साथी ने फिर बड़ी विनम्रता से कहा...सोया कहां...रात भर जाग कर लैपटाप पर फिल्म देखी...अपने हिन्ूद रीति रिवाज के अनुसार प्रात: कालीन तीन बजे से भूत प्रेत और अन्य तमाम ऐसी विपदाएं अपने डेरे में चली जाती हैं। इसलिए उसके बाद डर लगना बंद हो गया और चद्दर तान कर सो गया। वैसे उसकेबाद हल्की रोशनी भी होने लगी थी।

एक बार की बात है यही सज्जन रात को डेस्क से काम करके करीब बारह बजे घर जा रहे थे। स्ट्रीट लाइट बंद थी सो रास्ते में अंधेरा था। बा फिर क्या था...भाई साहब को हनुमान जी याद आ गए। तुरंत हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर दिया। रास्ते भर हनुमान चालीसा पढ़ी और जैसे तैसे घर पहुंचे। अगले दिन आपबीती भी सुनाई।