Saturday, November 30, 2013

चांद, रात और मनाली गांव


 

रात का शायद कोई तीसरा पहर रहा होगा। कमरे की खिड़की खुली हुई थी। दूर आसमान में चमकता हुआ चांद सामने की पहाड़ी पर बिछी बर्फ को और भी खूबसूरत कर रहा था। दिन में रोमांस की लहर पैदा करने वाली ब्यास नदी की कल कल रात के सन्नाटे में बहुत डरावनी लग रही थी। अचानक खुली नींद में मैंने देखा कि सौरभ सो रहा है। मैं फिर रजाई में घुस गया। चारो ओर से रजाई को दबाया लेकिन नींद नहीं आई। फिर थोड़ी देर बाद मै चुपचाप उठा। कमरे का दरवाजा खोला। तीसरी मंजिल पर बने होटल के कमरे से नीचे आया। देखा, मनाली गांव की पतली सड़के सुनसान थी। हालांकि पास वाले रेस्त्रां में जरूर कुछ इजारायली लंबी कश के छल्ले उड़ाकर गिटार पर कुछ गुनगुना रहे थे। उसको अनसुना कर मैं गांव की ऊंपरी चोटी पर चल दिया।

यह बात शायद दो साल पुरानी होगी। हम लोग चंडीगढ़ से मनाली में ‘ समर सनडाउनर्स ‘कार्यक्रम को कवर कनने गए थे। जिसमें अमर उजाला से मैं, दैनिक भास्कर से सौरभ द्विवेदी, पंजाब केसरी से राकेश, एचटी से फोटो जर्नलिस्ट कात्याल जी  एक महिला रिपोर्टर (जिनका मुझे नाम नहीं याद आ रहा)। हां, विश्व भारती भी था एचटी से। चूंकि उसकी ससुराल कुल्लू में हैं इालिए वह ऐसे ही मनाली आया था। खैर, एक बिजी शाम को बेहतरीन गांनों का आनंद लेने के बाद सभी लोग होटल पहुंचे। गपशप मारी और सोने चले गए। मैं और सौरभ एक रूम में थे। हम लोग बाते वाते करते करते सो गए लेकिन मेरी नींद आधी रात के बाद टूट गई। मैं कमरे से उतर कर मनाली गांव की ओर चल दिया। दरअसल हम लोग जिस होटल में रुके थे। उसके मालिक नरेन्द्र शर्मा जी मनाली गांच के ही रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि उनका घर गांव की सबसे ऊपरी चोटी पर मनु मंदिर के एक दम पास में है। बातचीत में उन्होंने बताया था कि सुबह सुबह मंदिर के कपाट खोलने की प्रक्रिया और फिर सन राइज के वक्त स्नो पीक्स की खूबसूरती अपने में अलग ही होती है। मैं इसी धुन में गांव की ओर चला जा रहा था। मोबाइल में घ़डी तकरीबन पौने तीन बजा रही थी। हजारों साल पुराने मनाली गांव के घर दूधिया रोशनी में अलग ही दिख रहे थे। मैं बढ़ा चला जा रहा था। तकरीबन आधे घंटे की सीधी पहाड़ी की चढ़ाई के बाद मैं मनु मंदिर की चौखट पर था। ठंडी हवा तन और मन दोनों को को चुभो रही थी। लेकिन इस अहसास में कि कुछ तो नया देखने को मिलेगा। मैने नरेन्द्र का फोन मिलाया। मंदिर के बगल वाले घर से ही फोन की घंटी सुनाई दी। बेहद पुराना घर। लकड़ी का बना दो मंजिला। ग्राउंड फ्लोर पर गायों के खाने के लिए चारे का इंतजाम और उनके रहने का बंदोबस्त। बाहर से ही बनी सीढ़ियों से ऊपर जाकर घर वालों के रहने का इंतजाम। मनाली गांव के सभी घर ऐसे ही बने हैं। खैर, फोन उठाते ही नरेन्द्र को अपना परिचय दिया। वह नीचे आए। अब तकरीबन पौने चार होने को था। मंदिर के कपाट खुलने थे। पुरोहित ने पूजा अर्चना कर मंदिर के कपाट खोले। तकरीबन आधे गांव के लोग आ गए। पूजा अर्चना की। इसी के साथ सामने ग्लेशियर पर पड़ी बर्फ ने भी अपना रंग सफेद से बदल कर सुनहरा करना शुरू कर दिया था। नीचे घाटी में घनघोर अंधेरा और ऊपर की पहाड़ी पर पड़ी बर्फ का सुनहरा पन। नरेन्द्र से होटल में मिलने की बात कह कर मैं वापस अपने होटल आ गया। देखा सौरभ भाई अभी भी सो रहे हैं। मैंने भी रजाई उठाई और लंबी तान के सो गया।