Wednesday, September 9, 2009

देसी छाप इंडियन, देसी छाप मीडिया !

वाह रे देसी छाप इंडियन और देसी छाप मीडिया। ये कभी भी हाई थिंकिंग और हाई प्रोफाइल एप्रोच तो रख ही नहीं सकते। अरे यार...शशि थरूर लंदन में पैदा हुए हैं। उन्होंने दुनिया देखी है। विदेश में उच्च शिक्षा ली है। एसएम कृष्णा भी देश के ऊंचे ओहदेदारों में हैं। विदेश से वह भी पढ़े। ऊपर से विदेश मंत्रालय का भार भी दोनों के कंधों पर आ पड़ा। अब अगर विदेशी नीतियों को तय करने की दशा और दिशा विलायती माहौल में न हो तो थोड़ी सी विदेशी फीलिंग की कहीं न कहीं कमी महसूस होती रहती है। सो पूरी तरह से विलायती माहौल में ढलने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा।....तभी तो ये दोनों लोग राजधानी के मौर्या शेरटन और ताज में पिछले कुछ महीनों से अपना डेरा बनाए हुए थे।

...और दोनों नेताओं की भावनाओं को समझे बगैर हमारी मीडिया पड़ गई इनके पीछे...बेचारे...विदेश मंत्रालय को फाइव स्टार तरीके से चलाने की मंशा को पाले इन नेताओं को बड़े बेआबरू होकर चेक आउट करके निकलना पड़ा। अरे...उन हाई प्रोफाइल मंत्रियों की नजरों में क्या इज्तत रह गई होगी हमारी मीडिया की....यही न...कि ये लोग हर वक्त गरीबों की सोंचा करते हैं...देश में पड़े सूखे की बात करते हैं...सूखे में दम तोड़ रहे किसान की बात करते हैं...झुग्गी और झोंपडिय़ों में रहने वालों की बात करते हैं...मंहगाई में टूट रही आम आदमी की कमर की बात करते हैं...बेरोजगार हुए युवाओं की बात करते हैं...गरीब आदमी के चिकित्सा और स्वास्थ्य की बात करते हैं....और भी न जाने क्या से क्या सोचा होगा आम आदमी यानी मैंगो पीपुल के बारे में राय रखने वाली मीडिया की गरीब सोंच के बारे में

....लेकिन नेता जी जरा ये भी तो सोंचो....कि देश के सैकड़ों सांसद दूर दराज इलाकों से चुनकर राजधानीआते हैं। इनमें से कुछ मंत्री भी बनते हैं। इनमें से कितने लोग ऐसे होते हें जो कि इतने मंहगे होटल में सिर्फ इस वजह से रुकते हैं कि उनका बंगला बनकर तैयार नहीं हुआ है। उसकी साज सज्जा नहीं हुई है। क्या ठहरने के लिए स्टेट गेस्ट हाऊस की सुविधाएं नहीं ली जा सकती। अरे आम आदमियों की तरह जीने की हिम्मत तो डालो नेता जी...

6 comments:

अपूर्व said...

ऐसी घटनाएं भारतीय राजनीति के पाँचसिताराकरण के कुछ छोटे-मोटे उदाहरण हैं बस..आश्चर्य होता है यह देख कर कि इस मँहगाई के जमाने मे देश चलाना भी कितना मँहगा बिजनेस हो गया है.कितने करोड़ों की मूर्तियाँ स्थापित करनी होती हैं..कितने जहाजों के फ़्लीट्स खरीदने होते हैं..पाँचसितारा वानप्रस्थ मे जीवन बिताना होता है..और बेवकूफ़ किसान फिर भी अपने थोड़े से कर्ज की फ़िक्र मे खुद्कुशी कर लेते हैं..अहसानफ़रामोश!!

Unknown said...

achcha to aap bhi blogger ho????

दिगम्बर नासवा said...

आपकी kalam की dhaar lajawaab चल रही है ............. pade प्यार से puchkaar कर maara है ....... पर neta लोगों का तो ये hak है ........... कुछ भी कर सकते हैं ........... रही मीडिया की बात तो वो भी बस अपनी टी.आर.पी. की लिए काम करते हैं .....

Pawan Kumar Sharma said...

golu kab se blogger ban gaya. waise acha likhta hai. blog jagat me aagman pad badhai

rajiv said...

Taharoo aur Krishna ko kya dosh dena yahan to har doosra neta janta ki kamai uda raha hai?

हरकीरत ' हीर' said...

लेकिन नेता जी जरा ये भी तो सोंचो....कि देश के सैकड़ों सांसद दूर दराज इलाकों से चुनकर राजधानीआते हैं। इनमें से कुछ मंत्री भी बनते हैं। इनमें से कितने लोग ऐसे होते हें जो कि इतने मंहगे होटल में सिर्फ इस वजह से रुकते हैं कि उनका बंगला बनकर तैयार नहीं हुआ है। उसकी साज सज्जा नहीं हुई है। क्या ठहरने के लिए स्टेट गेस्ट हाऊस की सुविधाएं नहीं ली जा सकती। अरे आम आदमियों की तरह जीने की हिम्मत तो डालो नेता जी...

सही कहा आपने ....!!