Sunday, September 6, 2009

...और चांद अंगड़ाई लेता हुआ निकल आया

ये बात 2003 की है। भोर के पांच बज रहे थे। और मेरी ट्रेन कालका स्टेशन पर पहुंच रही थी। हम तकरीबन चालीस लोग थे। सभी स्नातक अंतिम वर्ष के भूगोल के छात्र थे। स्टडी टूर पर हिमाचल प्रदेश जाना था। सो श्मिला के लिए कालका से ट्वाय ट्रेन पकडऩी थी। एक अजब सा उल्लास था। होता भी क्यों न। इतने सारे दोस्तों के साथ पहली बार घूमने जो निकले थे।सभी साथी स्टेशन पर खड़ी छोटी ट्रेन में सवार हुए। तकरीबन साढ़े आठ बजे टे्रन एक लंबी सीटी के साथ चल पड़ी। और शुरू हुआ ऐसा सफर जो आज तक नहीं भूला, न ही कभी भूल पाऊंगा। सब कुछ नया नया सा था। ये बात दीगर है जो वादियां, नजारे, गांव, शहर, टे्रनें, लोग और बोलचाल 2003 में एकदम अलग और नई सी लग रही थी वह 2006 से अपनी सी लगने लगी थी। क्योंकि मेरी किस्मत मुझे चंडीगढ़ में जुनून के लिए खींच चलाई थी। मैं बताता चलूं कि पत्रकारिता मेरा जुनून ही है। खैर...ट्रेन में मैंं अपने दोस्तों के साथ बैठा था। उनमें कुछ लड़के थे और कुछ लड़कियां। मस्ती हो रही थी। मेरे सामने वाली सीट पर एक बुजुर्ग महिला भी बैठीं थी। उनके साथ में यही कोई आठ दस साल का शायद उनका पोता रहा होगा वह भी बैठा था। वह दादी हम लोगों की शैतानियों को देखती और फिर मुस्कुराने लगती। वैसे तो शिमला तक का अमूमन सफर इस ट्रेन से पांच घंटे का होता है। चूंकि ये हम लोगों का पहला सफर था शायद इसीलिए बहुत लंबा हो गया। ट्वॉय ट्रेन कालका से चलकर इस रूट पर पडऩे वाले सनवारा स्टेशन पर जाकर रुक गई। समय यही कोई उस वक्त साढ़े दस बजे का रहा होगा। ट्रेन कछ देर तक नहीं चली। जानकारी लेने के बाद पता चला कि ट्रेन का इंजन खराब हो गया है। शिमला से दूसरा इंजन आएगा तभी ट्रेन चलेगी। हम लोगों ने कहा कि चलो...बहुत ही अच्छा है। पहाड़ों के बीच रुककर खूब मस्ती करेंगे। हम लोगों ने की भी खूब मस्ती। छह घंटे गुजर गए यानीकि साढ़े चार बजने को हो गए। तब तक इंजन नहीं आया था। अक्टूबर का महीना था सो हल्की सी ठंड भी होने लगी थी। कुछ समय बाद इंजन भी आ गया और ट्रेन एक बार फिर चल पड़ी। उसी सीट पर मैं जाकर बैठ गया जहां पर पहले बैठा था। सामने वहीं दादी बैठी हुई थी। उनके पास कुछ सामान था। वह बार बार अपने पास रखे सामान को सहेज लेती थी क्योंकि ट्रेन के हिलने डुलने पर वह इधर उधर हो जाता था। मैने उनसे पूछा कि दादी अगर इसमें कुछ टूटने वाला सामान हो तो मेरी सीट पर रख दीजिए मैं संभाल लूंगा। तो उन्होंने कहा कि बेटा...कुछ टूटने वाला नहीं है। इसमें तो मेरी बेटी की करवा चौथ की होने वाली पूजा का सामान है। जो कि मुझे उसके घर पर देना है। मेरी बेटी का पहला करवा चौथ है। पूजा का सामान मां के घर से ही जाता है। सो मैं लेके जा रही है। मैने उनकी बात को सुनकर सिर्फ अच्छा कह कर बाते करने मे लग गया। शाम के सात बज रहे थे। हम लोगों की ट्रेन शिमला नहीं पहुंची थी। पता चला कि अभी पहुंचते हुए एक से सवा घंटा और लग जाएगा। दादी ने भी पूछा कि बेटा कितना समय और लगेगा तो मैने बताया सवा घंटे। इतना सुनकर उन्होंने ट्रेन से बाहर की ओर झांका। पहाडों को अंधेरे ने अपने आगोश में ले लिया था। कोई गांव आता था तो उसकी लाइटें ही टिमटिमाती हुई नजर आती थी। वह बार बार कुछ खास देखने की कोशिश कर रहीं थी। मैने फिर उनसे कहा कि हम लोग हैं आपके साथ इसलिए रात को परेशान होने की जरूरत नहीं है। तो उन्होंने बताया कि...बेटा मैं अपने लिए परेशान नहीं हो रही हूं...मैं तो अपनी उस बेटी के लिए परेशान हूं...जिसका आज पहला करवा चौथ का व्रत है...पौर पूजा का सारा सामान मेेरे पास है। चांद निकलने को है...पता नहीं कैसे होगी मेरी बेटी की पूजा...बस मैं यही बार बार देख रही हूं कि कहीं चांद तो नहीं निकल आया। उनका इतना सुनना वहां मौजूद सभी लोग ने बाहर से चांद को देखने की कोशिश की और कहा कि दादी अभी चांद नहीं निकला है। ट्रेन तकरीबन सवा आठ बजे शिमला स्टेशन पर पहुंची। ठंड मानों शरीर को चीर रही हो। हम सभी लोग ट्रेन से उतरे। अपने सामान के साथ उन दादी का सामान भी स्टेशन पर उतार कर बाहर लेकर आए। एक बार फिर से आसमान की ओर देखा तो चांद नहीं निकला था...उनका दामाद दादी को लेने स्टेशन पर आया था। उससे परिचय भी हुआ...दादी अपनी बेटी के घर की ओर चल पड़ी...और हम लोग अपनी उस ठिकाने की ओर जहां पर रात बसर करनी थी...मेरा होटल थोड़ा ऊंचाई पर था...ऊपर चढ़ ही रहा था तो देखा कि आसमान में पूरब दिशा से हल्की सी रोशनी हो रही है....ये रोशनी उस अंगड़ाई लेते हुए चांद की थी जो आज अनगिनत सुहागिनों को दीदार कराने के लिए निकल चुका था...चांद को देखकर बस दिल में एक ही बात रह रह कर कौंध रही थी कि पता नहींं वह दादी कहां तक पहुंची होंगी...घर पहुंच गईं होंगी या उनको भी हमारी तरह हल्की सी रोशनी के साथ चांद निकलता हुआ दिखा होगा......।आज इस घटना को छह बरस होने को हैं। मैं अब अक्सर उन्ही राहों से गुजरता हूं...जहां पर छह साल पहले जाते हुए कुछ एक दादी की व्यथा को महसूस किया था....तो बरबस ही वो बूढ़ी दादी का चेहरा सामने आ जाता है और रह रह कर सिर्फ यही सोंचने को मजबूर हो जाता हूं कि...उनकी बेटी की पहली करवा चौथ की पूजा कैसे हुई होगी....चांद को देखकर या..........................!

4 comments:

अपूर्व said...

हमारी जिंदगी मे कितनी ही छोटी छोटी चीजें होती हैं..जो एक पल हमारे जेहन मे आती हैं और अगले ही पल हम उन्हे भूल जाते हैं..ऐसी ही छोटी मगर भावपूर्ण बात को इतने साल याद रखने और हमसे शेयर करने के लिये शुक्रिया..खूबसूरत किस्सागोई है आपकी कलम मे..

rajiv said...

Badhiya yatra vritant. Ab boke se Solan aur Morni hills ki kahani bhi likh dalo.

Ghar ki bat hai said...

your wrote well.

Keep it.

i am waiting your new lesson.

Ghar ki bat hai said...

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gyanendra