Saturday, October 20, 2012

...जो लौट के घर न आए

घर से तार पहुंचा था। पता चला कि सूबेदार सुरिन्दर विर्क के  बेटा हुआ है। विर्क तो मारे खुशी के बल्लियों उछल रहा था। खाना भी शायद ढंग से नहीं खाया था। अपनी बीबी हरप्रीत की फोटो को चांदी सी बिछी बर्फ पर लेटकर खूब चूमा था उसनें। मैं भी वहीं था। विर्क ने कहा...ओए...ढिल्लो..तू ताया बन गया है...ताया...। मुझे गले से लगाया और बर्फ पर गिरा दिया। फिर मेरा हाथ पकड़ कर बैठ गया। चंद सेकेंड की खामोशी के बाद ही एक सिसकती हुई आवाज के साथ विर्क के आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। मैंने पूछा ओए...विर्क...ये क्या...तू रो रहा है...अरे आज तो जश्न की रात है। विर्क कुछ नहीं बोला। फिर मेरे कंधे को बहुत ही तेजी से पकड़ कर बोला...ढिल्लो...पता नहीं मैं अपने बेटे को देख पाऊंगा भी या नहीं...मैंने तुरंत ही उसका मुंह दबाते हुए कहा...ऐसा न बोल। चंद रोज में जंग खत्म हो जाएगा। हम सब वापस अपने घर चलेंगे। फिर तूं अपने गांव में एक अच्छी सी पार्टी देना। मेरी बातों को सुनकर विर्क हंसा और बोला...ढिल्लो तुझे तो पता ही है क्या हालात हैं। हमारी ब्रिगेड के कई जवान चीनी सैनिकों से लड़ते हुए शहीद हो चुके हैं। उसने नाम बताया...वो...वो...सुखबीर...याद है...चार महीने पहले ही तो शादी हुई थी उसकी...चीनियों ने मार दिया। उसकी बीबी को तो पता भी नहीं होगा शायद। बस इसी का डर है...क्या होगा मेरी बीबी और बच्चे का...मैने कहा तू फिक्र न कर...भारत सरकार ने पंजाब और राजस्थान से कुछ और सेना की टुकडिय़ों को इस इलाके में भेज दिया है। हम लोग ज्यादा हो जाएंगे और चीनियों को मार भगाएंगे। लेकिन उसके दिल में न जाने कैसी उलझन हो रही थी...बोला...पता नहीं मेरा बेटा कैसा होगा...मुझ पर गया होगा या प्रीत पर...। बस जल्दी से युद्ध खत्म हो और मैं अपने घर जाऊं...अपने काके को देखने का बहुत जी कर रहा है।  मंैने उसे बहुत समझाया।
आधी रात बीत चुकी थी। संदेश मिला कि सेलापास के आगे डोएनारा इलाके में चीनी सैनिकों ने फिर से हमला कर दिया। आप लोग फौरन मोर्चा संभालो। मैं तो वायरलेस पर था ही। विर्क  अवनी ब्रिगेड के साथ मोर्चे पर पहुंच गया। युद्ध हुआ। ब्रिगेड के ज्यादातर लोग मारे गए। विर्क भी उनमें से एक था।
आज पचास साल हो गए हैं इस बात को। विर्क का बेटा भी पचास साल का हो गया है। अब कनाडा में सेटल है।  कभी कभार ही आता है इंडिया। सुना है कोई बड़ा बिजनेस करता है। मेरी उम्र भी ८३ साल के करीब है। सुना है कि विर्क की शहादत की खबर उसकी पत्नी नहीं बर्दाश्त कर पाई थी। कुछ दिन बाद ही चल बसी थी। उसके बेटे को उसकी मासी ने पाला था। जो बाद में उसको लेकर कनाडा चली गई थी। १९६२ में हुए भारत-चीन के युद्ध की बातें आज भी जख्मों को हरा कर देती हैं। अगर हमारी सरकार पहले से मुस्तैद होती तो शायद विर्क और उसके जैसे अनगिनत शहीद हुए जवान अपने परिवार को खुशियां दे रहे होते।
(१९६२ में हुए भारत-चीन युद्ध के दौरान मेजर ढिल्लो तवांग इलाके में तैनात थे। उनसे बातचीत पर आधारित )

2 comments:

rajiv said...

Beta Golu
Tussi to kamal ka likhte ho..Chndradhar sharma Guleri yaad agaye badhayee. Mujhe tum per fkhta hai.

आशीष तिवारी said...

ojha sir...aaapko yaad hoga aaj se saat saal purana wo din aapne aur udai sir ne hiv aids aids ki story ki taarif ki thi...page one anchor publish kiya tha...jo bhi seekha hai sir aap aur udai sir ki prerna aur daat fatkaar se seekha hai
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