Tuesday, October 16, 2012

...स्वातघाटी के हर घर में है मलाला

उसको देखने के बाद लगा कि शायद असली गुलाबी रंग ऐसा ही होता है। कभी घर से बाहर कदम न रखने वाली नाजनीन जब पहली बार चंडीगढ़ आई तो उसकी बड़ी बड़ी आंखों में मैंने समंदर से सपने पलते लेते देखे थे। पता नहीं उनके सपनों को पंख लगे भी होंगे या यूं ही कहीं फडफ़ड़ा कर दफन हो गए होंगे उस स्वात घाटी में जहां से वह आई थी।
नाजनीन स्वात घाटी से अपने दो भाईयों खुदाबक्श और शाहिद के साथ २००९ में चंंडीगढ़ में लगे एक ट्रेड फेयर में आई थी। बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन थोड़ी बहुत यादे अभी भी जेहन में हैं नाजनीन, खुदाबक्श और शाहिद से हुई मुलाकात की। नाजनीन की तमन्ना थी कि वह अपने अब्बू और भाईयों के हाथों से बनाई जाने वाली शालों के बिजनेस को नया मुकाम दे। लेकिन उसको एक डर हमेशा बना रहता था कि ऐसा हो नहीं सकता। क्योंकि स्वातघाटी में लड़कियों की पढ़ाई सबसे बड़ा जुर्म है, और बगैर पढ़े बिजनेस को बढ़ाया नहीं जा सकता। जो भाईयों ने पढ़ा था बस उससे ही सीखती थी नाजनीन। नाजनीन ने बताया था कि स्वातघाटी में तालिबानियों के गढ़ पियूचार कस्बे से ही तमाम बंदिशो के संदेश रेडियो पर आते रहते हैं। मुझे याद है उसने यही शब्द कहे थे...मैं अपने अब्बू और भाईयों का हाथ बंटाने के लिए पढूंगी चाहे जो हो जाए...अगर मैं घाटी से निकल कर चंडीगढ़ आ सकती हूं तो मैं वहां पढ़ भी सकती हूं...गजब का कांफीडेंस था उसमें।
अभी कुछ दिन पहले पता चला कि वहां की ऐसी ही एक चौदह साल की लड़की मलाला को तालिबानियों ने गोली मार दी। क्योंकि वह वहां की लड़कियों को पढ़ाने के लिए आगे आ रही थी। मलाला की घटना से मुझे नाजनीन की याद आ गई...पता नहीं उसके सपने सच हुए होंगे या वह भी अभागी मलाला बन चुकी होगी।



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