Saturday, November 27, 2010

भैया...ये तो डाउन मार्केट है!

रात को टीवी पर शोले मूवी देख रहा था। बीच में ब्रेक हुआ तो चैनल बदलने लगा। चैनल बदलते बदलते एनडीटीवी पर रवीश की रिपोर्ट कार्यक्रम आ रहा था। देखने लगा। गढ़मुक्तेश्वर के किसी मेले पर आधारित थी ये रिपोर्ट। कार्यक्रम अच्छा लगा तो मूवी का इरादा छोड़ कर उसे देखने लगा। कार्यक्रम खत्म होने के बाद फिर शोले मूवी देखी और सो गया। सुबह उठा। अपना अखबार उठाया तो पन्ना पलटते पलटते एडिटोरियल पेज पर पहुच गया। देखा वहां पर रवीश कुमार का एक लेख सोसाइटी में मोहल्ला लिखा हुआ था। उसको पढ़ा। अच्छा लगा। खैर, अमूमन सभी न्यूज पेपर पढऩे के बाद मार्निंग मीटिंग के लिए ऑफिस पहुंचा। चूंकि रविवार था और लगभग सभी सरकारी कार्यालय बंद होते हैं, इसलिए रोज की तरह जल्दी भागना नहीं था सो कुछ साथियों से अपने अखबार के एडिटोरियल पेज की तारीफ करने लगा। खासकर रवीश कुमार के लिखे गए सरोकार कॉलम का। मैनें अपने एक साथी को रात वाली रवीश की रिपोर्ट का भी जिक्र किया। मैंने कहा कि उस रिपोर्ट ऐसे मेले का जिक्र था जो एकदम अपने गांव जैसा मेला था। जिसको देखे मुझे तो कम से कम दस साल हो गए हैं। इसलिए पूरा कार्यक्रम देखा और पुराने दिनों में कुछ पल के लिए खो भी गया। जिस अखबार में काम करता हूं उसके उसके एडिटोरियल पेज पर रवीश कुमार का सोसाइटी में मोहल्ला भी आज की व्यथा और कथा कहता हुआ सामयिक कॉलम हैं, इसलिए पसंद आया। मैं अपने जिन साथी से चरचा कर रहा था वह भी ऐसे सरोकारों से प्रेरित रिपोर्ट्स और कॉलम में सहमति जता रहे थे।
तभी हमारे एक अन्य साथी जो इस बातचीत के दौरान का हिस्सा थे बोल पड़े...क्या एनडीटीवी डाउन मार्केट रिपोर्ट देता है। रवीश कुमार क्या डाउन मार्केट पर ही लिखते हैं? वह कहने लगे कि ये मेला...बैलगाड़ी...गंदे बच्चे...गंवई अंदाज...गंवई गाने...गांव की कच्ची सड़के, मोहल्ले का कांसेप्ट और न जाने क्या क्या गिनाने लगे। अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोले भैया...ये सब तो डाउन मार्केट है। देखो न...अब कौन पूछता है इनको। इनके दम पर टीआरपी और रीडरशिप नहीं बढ़ती। कुछ बेचना है तो हॉट बेचो। सनसनी बेचो। तुक्के बेचो। हाई सोसाइटी को ध्यान मे रखकर बेचो। सबको ऐसी सोसाइटी तक अपनी पैठ बनानी है। इसलिए ये डाउन मार्केट वाली खबरों और रिपोर्ट्स से कुछ नहीं होने वाला।
खैर मैने उनकी बातें सुनी...और उनकी बात से कुछ हद तक सहमति भी जताई। मैं एनडीटीवी का मुरीद नहीं हूं और उसकी वकालत भी नहीं करता इसलिए मुझे नहीं मालूम कि रवीश की रिपोर्ट और उनके जैसे अन्य टीवी कार्यक्रमों की टीआरपी क्या है...मुझे इसका कतई इल्म नहीं है कि अखबार के एडिटोरियल में लिखे ऐसे लेख को पढऩे के बाद कितने लोगों ने वाह कहा होगा और कितनों ने डाउन मार्केट कहते हुए आगे का पन्ना पलट दिया होगो...लेकिन मुझे इतना जरूर मालूम है ऐसी डाउन मार्केट रिपोर्ट्स और कॉलम दिल को उस अपनेपन का अहसास जरूर दिला जाते हैं जिसे कभी आपने बचपन में महसूस किया था। जिसे हम डाउन मार्केट रिपोर्ट कहते हैं शायद उसको हमारे और आपके बुजुर्गों ने भी महसूस किया होगा।

1 comment:

rajiv said...

Dear Ashish m down market kuch nahi hota. Badi badi oage 3 parties me Mela aur Thela theme per fashionable logon ko batiyate aur ithlaate dekha hai. Up ya down market kuch nahi hota, sab nazron ka fer hai. ;-)