Sunday, February 21, 2010

इमली के पेड़ पर यादों क झुरमुट

वह इमली का पेड़ आज भी है। जिसने मुझे अपने बाबा की उंगली पकड़ कर लडख़ड़ाते हुए खेतों में जाते हुए देखा था। मुझे आज भी कुछ कुछ याद आ रहा है कि जब मेरे बाबा खेतों में खाद डालने जाते थे तो मैं भी उनके साथ बैलगाड़ी पर पीछे से चढ़ जाता था। बैलों को हांकना नहीं आता था लेकिन उनके साथ कोशिश किया करता था। बाबा खेतों में खाद डालते थे और मैं चुपचाप उतर कर उसी इमली के पेड़ के नीचे बैठकर उसकी पत्तियों को खाता था। बड़ी खट्टïी पत्तियां होती थी सो ढेर सारी रख लेता था। जो कि घर पर वापस आकर भी खाता था। कभी कभार इसके लिए डांट भी पड़ती थी लेकिन...।
समय बीतता गया और सब कुछ बदलता रहा। मैं गांव से अपने पिता जी के पास शहर पहुंच गया। लेकिन हर छुट्टïी पर मैं पिता जी के साथ जिद करके साइकिल पर गांव जरूर जाता था। गांव जाता तो फिर उनके साथ खेतों पर भी जाता था। उसी इमली के पेड़ की पत्तियां खाता और अगर इमलियां लगी होती तो पिता जी से जिदकर के दो चार तुड़वा लेता था। धीरे धीरे पढ़ाई के दौरान स्कूल की ऊपरी कक्षाओं में पहुुंच गया तो गांव भी जाना कुछ कम हो गया। पिता जी पहले सरकारी अध्यापक थे लेकिन बाद में उन्होंने नौकरी छोड़कर अपना व्यवसाय शुरू कर लिया। लेकिन मैंने जबसे होश संभाला तब से मैंने पिता जी को व्यवसाय करते ही देखा है जो कि आज भी अनवरत जारी है।
शायद समय और जरूरी सुख सुविधाओ के अभाव के कारण मेरे बाबा और दादी अम्मा को भी पिता जी ने गांव से शहर में बुला लिया। वैसे मेरे बाबा, दादी अम्मा और पिताजी तो गांव जाया करते थे लेकिन मैं किसी कार्यक्रम में ही ले जाया जाता था। प्रमुख कारण सिर्फ स्कूल होता था। बैलगाड़ी...साइकिल...और अब स्कूटर। मेरे पिता जी के पास प्रिया स्कूटर था। मैं कुछ बड़ा हुआ था सो उनको पीछे बिठाकर चलाने लगा था। जब गांव जाता तो हमेशा की भांति उन्हीं खेतों की ओर जाता था जहां पर कभी बाबा के साथ बैलगाड़ी पर जाया करता था। उसी पेड़ के नीचे अब मै स्कूटर लगाता था और आराम से खेतों से वापस आ जाता था। स्कूटर से मोटरसाइकिल आई। तब तक मैं भी जवान हो गया था।
कुछ साल पहले मैं अपने गांव एक लंबे समय बाद शायद आठ नौ साल बाद गया। इस बार मैं कार पर था। मैंने कार को उस जगह पर लगाया जहां पर एक दीमक लगा पेड़ था। पेड़ पूरी तरह से सूख चुका था। छांव के लिए उसकी पत्तियां भी नहीं थी। कुछ बच्चों ने उसकी जड़ के पास एक दो गाय बांध रखी थी। पूरा खेत घूम आया। पिता जी भी थे। वापस आते हुए मैंने उनसे पूछ लिया...पिता जी यहां पर एक इमली का पेड़ हुआ करता था। उन्होंने इशारा करते हुए कहा कि यही तो है सामने...जहां कार खड़ी की है। मैंने उसकी ओर देखा...एकबारबी उस निर्जीव पेड़ के लिए आंखे आंखे भर आईं। मन में वह सालों पहले के दृश्य हल्के हल्के से सजीव हो उठे। जब इसी पेड़ की छांव में मैं बैठकर पत्तियां खाता था। बाबा के साथ। अब न तो बाबा है और न वह बैलगाड़ी। एक इमली का पेड़ था वह भी अपने अस्तित्व के समापन की ओर है...।

2 comments:

rajiv said...

Dear Asish yaden hamesha sukhad hoti hain aur badlav hi zindagi hai. Sookhe imali ke ped ke aas pass nazar dalo kuch naye ped zaroor lahlah rahe honge.

Unknown said...

welcome online Tiwari Ji.....