आपकी तस्वीरें देखी। आपकी फड़कती हुई भुजाएं देखी। हाथ में दंड लेकर आपने जिस पौरुषत्व का प्रदर्शन किया। ऐसा निश्चित रूप से सिर्फ किसी 'वीर की भुजाएं' ही कर सकती है। मुझे गर्व है आप पर 'बाहुबली जी'।
मैंने बचपन से लेकर आज तक घोड़े के बारे में जब जब सुना तब तक महाराणाप्रताप का वो 'चेतक' ही याद आता था। लेकिन 'बाहुबली जी' आपने तो कमाल कर दिया। ऐसे चेतकों को छठी का दूध याद दिला दिया। यकीन मानिए 'बाहुबली सर' निश्चित रूप से आप जैसाा योद्धा अगर उन दिनों होता तो चेतक कब का मैदान छोड़ कर भाग जाता। नहीं भागता तो आप उसको भागने लायक ही नहीं छोड़ते।
आपने बहुत सही किया जो घोड़े को जमकर हौका। टांगे टूट गई तो टूट जाने दो।
पता नहीं बाहुबली सर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि घोड़ा साला असहिष्णु ही रहा होगा...वरना आपा जैसा 'सहिष्णु नेता' भला कहीं ऐसा करता। और सर... हो सकता है घोड़ा देशद्रोही भी हो। सहीं किया सर आपने। वैसे क्या कहा था घोड़े ने आपको ? क्योंकि इतना बलशााली शरीर पराक्रम के लिए यूं ही उतावला नहीं होता।
खैर...बाहुबली सर मुझे यकीन है आप की भुजाएं फड़क रहीं होगी। कस कस कर फड़क रहीं होगी। बार्डर के उस पार जो घोड़े रोज हमारी सरहदों की ओर देखकर
कांबिंग करते हैं उनको सबक सिखाने के लिए सर। सर एक दिन हो जाएं उधर भी दो दो हाथ। सर...आपको तो निश्चित रूप से अब तक 'घोड़ामार विधायक' की उपाधि मिल गई होगी।
आप महान हैं सर। हमारे देश को आप जैसे ही 'घोड़ामार विधायक' की बहुत जरूरत है।
आपने बहुत सही किया जो घोड़े को जमकर हौका। टांगे टूट गई तो टूट जाने दो।
पता नहीं बाहुबली सर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि घोड़ा साला असहिष्णु ही रहा होगा...वरना आपा जैसा 'सहिष्णु नेता' भला कहीं ऐसा करता। और सर... हो सकता है घोड़ा देशद्रोही भी हो। सहीं किया सर आपने। वैसे क्या कहा था घोड़े ने आपको ? क्योंकि इतना बलशााली शरीर पराक्रम के लिए यूं ही उतावला नहीं होता।
खैर...बाहुबली सर मुझे यकीन है आप की भुजाएं फड़क रहीं होगी। कस कस कर फड़क रहीं होगी। बार्डर के उस पार जो घोड़े रोज हमारी सरहदों की ओर देखकर
कांबिंग करते हैं उनको सबक सिखाने के लिए सर। सर एक दिन हो जाएं उधर भी दो दो हाथ। सर...आपको तो निश्चित रूप से अब तक 'घोड़ामार विधायक' की उपाधि मिल गई होगी।
आप महान हैं सर। हमारे देश को आप जैसे ही 'घोड़ामार विधायक' की बहुत जरूरत है।
--------------------------यह कविता तो बस यूं ही-------------------------
रण बीच चौकड़ी भर-भर करचेतक बन गया निराला था
राणाप्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था
जो तनिक हवा से बाग हिली लेकर सवार उड जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं तब तक चेतक मुड जाता था'''
गिरता न कभी चेतक तन पर राणाप्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर वह आसमान का घोड़ा था
था यहीं रहा अब यहाँ नहीं वह वहीं रहा था यहाँ नहीं
थी जगह न कोई जहाँ नहीं किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं
निर्भीक गया वह ढालों में सरपट दौडा करबालों में
फँस गया शत्रु की चालों में बढते नद सा वह लहर गया
फिर गया गया फिर ठहर गया बिकराल बज्रमय बादल सा
अरि की सेना पर घहर गया। भाला गिर गया गिरा निशंग
हय टापों से खन गया अंग बैरी समाज रह गया दंग घोड़े का ऐसा देख रंग
राणाप्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था
जो तनिक हवा से बाग हिली लेकर सवार उड जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं तब तक चेतक मुड जाता था'''
गिरता न कभी चेतक तन पर राणाप्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर वह आसमान का घोड़ा था
था यहीं रहा अब यहाँ नहीं वह वहीं रहा था यहाँ नहीं
थी जगह न कोई जहाँ नहीं किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं
निर्भीक गया वह ढालों में सरपट दौडा करबालों में
फँस गया शत्रु की चालों में बढते नद सा वह लहर गया
फिर गया गया फिर ठहर गया बिकराल बज्रमय बादल सा
अरि की सेना पर घहर गया। भाला गिर गया गिरा निशंग
हय टापों से खन गया अंग बैरी समाज रह गया दंग घोड़े का ऐसा देख रंग
No comments:
Post a Comment